तेरी सूखी हुई पलकों पे नया खुवाब रख दूं
देखी नहीं जाती बेबसी हथेली पे महताब रख दूं
उठता नहीं है मुझ से तेरी नवाज़िशो का बोझ
सामने मैं ज़िन्दगी तेरी खुली किताब रख दूं
मुरझा गया है क्यों तेरा चाँद सा रोशन चेहरा
खुदा के फैसलों पे क्यूकर हिजाब रख दूं
रोक रखे है जो सैलाबे वफ़ा पलकों पे
हासिल हो इनसे बहर बे हिसाब रख दूं
अंधेरो को मिटाने की कोई तदबीर तो होगी
ज़ुल्मत के माथे पे दहकता आफताब रख दूं