जब कभी भी शहर में मै बाहर आता यार।
चील कौआ मुजिरिमो क़ा अदालत दिख जाता॥
जऩता जरजर जग जाहिर हाला हलाहल पी पीकर।
भहरात फहरात हहरात ढ़हनात गते सार ॥
कमनीय कला कामना कोमल तंद्रा तारतार।
भ्रष्टाचार ब्भिचार वलात्कार बलासे खिल जाता॥
बोझिल वालायेंबड़कन बकवाश बहार।
अनगित अंगार झंझार भंभार धूआधार ॥
लंपट चंचल थहरत कुस काश अधियार ।
चमचमाती चूड़ियॉ कलाइयॉ बेजार ॥
मँगल मनमोहक मुक्ता मचली मनुहार ।
सो संवादों से संसद सिहरत सरमसार ॥
तरनि तरल तरंग तप्त जग मेंआग जलाकर ।
कलकल छलछल छवि छनती छनछन छनकर॥
झरझर झरझर झरते निर्झर अगनित हार ।
जब कभी भी शहर में मै बाहर आता यार ॥
देखा प्रातः नभ की लाली
हाथ लिए पूजा की थाली
गिरि गहर भटक रहा था
यौवन उपवन रूठा माली।