रेत की दिवार से बनाई थी एक घर
लहरें चली और बहा ले गई
बड़ी मुस्किल से सम्हाला था ये कमजोर दिल को
कोई अजनवी आई और चुरा ले गई
इस सुखी शाख पर बस बचे थे कुछ पत्ते
एक तूफान आई और उडा ले गई
उनकी फूल सी हाथो को मै पकड कर बैठा था
आवारा भवरे आए और छुडा ले गई
न पता न ठिकाना तलासुं कहा मै
बता तूँ ही ऐ खुदा किधर हवा ले गई
हरि पौडेल