नयन में यह धार कैसी?
कर्म पथ में हार कैसी?
कंटकों को भी बहा दे,
अश्रु की हो धार ऐसी||
क्या सवेरा, रात क्या है?
नियति का प्रतिघात क्या है?
थक गए जो, रुक गए जो,
लक्ष्य की फिर बात क्या है?
अश्रु या मोती नयन के,
क्यों नियति पर है बहाना?
कल हमीं थे, आज हम है,
जूझना, है आजमाना|
राह को ही वर लिया तो
फिर नियति की मार कैसी?
कंटकों को भी बहा दे,
अश्रु की हो धार ऐसी||
–दीपक श्रीवास्तव
दीपक जी इस कविता को पढकर मुझे अपनी एक कविता की दो पंक्तिन्याँ याद आ गयीं ||
ये कवियों की अमर वाणी चराचर को झुक सकती ||
वो लवकुश बल पराक्रम को है फिर से दिखा सकती ||
बहुत खूब कविराज
http://www.hindisahitya.org/poet-naresh-patel/%e0%a4%b8%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%87/
राह को ही वर लिया तो
फिर नियति की मार कैसी? wah..
bahut achhi rachna… shubhkaamnaayen !!
शानदार प्र्स्तुती है, ये आपकी। मंच पे पढ़ी जाने वाली कविता है जो दर्शकों को डूबा दे साहित्य सागर में। बधाई।
बहुत-बहुत धन्यवाद मित्रों| हिंदी साहित्य की सेवा में जो भी थोडा बहुत योगदान कर सकूं, उसी में अपना जीवन धन्य समझूंगा||