रवि गुरु शुक्र रात्रि को जावै |सोम भौम शनि दिन को भावै ||
सूर्यवार ताम्बूल जो खाई | घृत के पिए दोष मिट जाई ||
सोमवार दर्पण कर दर्शन |दुग्ध पान ते होइ प्रसन्न मन ||
भौमवार को गुड जो खावै |हनुमत ताकर दोष मिटावै ||
बुद्धवार सब विधि प्रतिकूला |उत्तर दिशा न जाइय भूला ||
कवनिव जतन होइ जो जाना |बुद्धवार धनिया परमाना||
जीरा और दही गुरुवारा |शुक्रवार दधि दूध विचारा ||
अदरक उड़द शनि को खावै|ताकर दिशा शूल मिट जावै ||
वह क्या बात है, श्रीमान, कुछ ऐसी ही पंक्तिया हमारी राजस्थानी में भी किसी अज्ञात कवि की भी है,
रवि ताम्बूल, सौमुख दर्पण, धनिया चाबे धरतिननंदन,
बुध मुख गुड़, गुरु मुख राई, शुक्र कहे मोहे दही खुवाई,
शनिवार को बायबिड़ंगा, इनसे काम सफल ओर चंगा।।
आपने बहुत अच्छा काम किया है, ज्योतिष को काव्य मे उतारना वाकई जानदार ओर शानदार काम है।
मेरा भी एक विराट प्रोजेक्ट चल रहा है, फिर पूरा हो जाएगा तो बताएँगे।
नमस्कार।
मनोज जी आप विराट रूप हो आप का विराट प्रोजेक्ट जरूर पूरा होगा |हमारी शुभकामनाएं आप के साथ में है |
आप ने जो मेरे काम की तारीफ करके जो बड़ाई और मार्ग दर्शन दिया उसके लिए आप को बहुत बहुत धन्यवाद |