Homeवन्दना गुप्ताभुंजे तीतर सा मेरा मन भुंजे तीतर सा मेरा मन vandana gupta वन्दना गुप्ता 03/10/2013 1 Comment भुंजे तीतर सा मेरा मन वक्त की सलीब चढ़ता ही नहीं कोई आमरस जिह्वा पर स्वाद अंकित करता ही नहीं ये किन पैरहनों के मौसम हैं जिनमे कोई झरना अब झरता ही नहीं मैं उम्र की फसल काटती रही मगर ब्याज है कि चुकता ही नहीं खुद से लडती हूँ बेवजह रोज ही मगर सुलह का कोई दर दिखता ही नहीं Tweet Pin It Related Posts पपडाए अधरों की बोझिल प्यास सुन्न ओस में नहायी औरतें About The Author vandana gupta One Response mukesh bajpai 06/10/2013 Accha Likha Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
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