जयतिजयश्रमकीजय–जयहो।
जयतिजयश्रमकीजय–जयहो॥
… भूखाकोईरहेनजगमें, प्यासाकोईनसोए।
छतनसीबहरजनकोहोवे, व्याधिनकोईढोए।
खुशियोंकासंसारबसेहरप्राणीनिर्भयहो।
जयतिजयश्रमकीजय–जयहो॥
जीनेकेअवसरसमानहों, पीड़ितरहेनकोई।
माँग–पूर्तिअनुपातसहीहो, काटेफसलजोबोई।
सत्ताजिसकेहाथमेंहोवहकभीननिर्दयहो।
जयतिजयश्रमकीजय–जयहो॥
जोश्रमकरेवहीफलपाए, यहनियमनअपनाएँ।
श्रमसे ‘शून्य‘ समस्याओंके, बादलछितराजाएँ।
संकल्पोंकोपूराकरनेकादृढ़निश्चयहो।
जयतिजयश्रमकीजय–जयहो॥
C.M.UPADHAYE