Homeअमृता भारतीस्मरण स्मरण साक्षी प्रजापति अमृता भारती 18/02/2012 No Comments स्मरण- तब कोई न रहता पास बस वह उसका अहसास । मैं बाहर आ जाती अरण्य में अचानक उग आए चाँद की तरफ़ या अन्दर चली जाती जहाँ पत्थर से उमग कर बह रही होती कोई छोटी-सी जलधार । स्मरण कितना अकेला कर देता मुझे उसके साथ । Tweet Pin It Related Posts लोग उसे सोना-चाँदी देते हैं मैं उसकी आँच में अपने को जलाती हूँ मेरे देश की तरह About The Author साक्षी प्रजापति Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.