Homeअमृता भारतीऔर मैं भी और मैं भी साक्षी प्रजापति अमृता भारती 18/02/2012 No Comments मेरा अंधेरा खो गया था उसकी आँखों में और मैं भी- चलते-चलते उसके साथ क्षितिज की सुनहरी पगडंडी पर । श्वेत दृष्टि श्यामल हो उठी थी । मेरे होने, न होने को वह विभक्त नहीं कर सका था सूर्यास्त से सूर्योदय के बीच । Tweet Pin It Related Posts एकान्त पहचान स्वप्न About The Author साक्षी प्रजापति Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.