अभी अचानक नहीं है निकला,
मानव हिरदय को जिसने कुचला,
विविध रूपधर भर धरती में,
अवलोक रहा है वारम्बार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
ज्ञान नहीं है,तर्क नहीं है,
जन है जग है मोह कई है,
कला नहीं है भाव विवेचन,
दयनीय है जीवन के सार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
कौन सन्देशा बांटें घर घर,
किसके भरोसे चले हम पथ पर,
किसके जीवन का हो उपकार,
नस्ट-भ्रष्ट है ब्यक्ति संसार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
जोर-शोर से कभी चिल्लाकर,
कभी हवा में महल बनाकर,
फिर विलीन हो जाते सहसा,
घोष भरा विप्लव अपार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
निर्भयता थी जिनकी विभूति,
पावनता अबोध थी जिनकी,
जो शिवरूप सत्य था सुन्दर,
विखर गए जग के श्रृंगार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
आह्लाद कभी तो अश्रुविशाद,
वेद विख्यात मिथ्या नहीं बात,
काल को नहीं किसी की याद,
जगत की कातर चीत्कार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
लूटकर परसुख सदा निरंतर,
जीविका हरते मूढ़ सा मर्मर,
मानव मन कुछ तो चिंतन कर,
जीवन के सन्देश थे चार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
जीवन हो रहा उपेक्षित,
निज लक्ष्य कर्म दृष्टि से वर्जित,
प्रेरणाशक्ति से क्यूँ है वंचित,
कल को रचदो नवसंसार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
गिनके हैं सबके दिनचार,
फिर भी मची है हाहाकार,
युग-युग के अमृत आदर्श,
विम्बित करती है जीवन भार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
कर्मठ विनम्र मंगलपथ साधक,
सत्य न्याय सदगुण आराधक,
जन जन बने गर आविष्कारक,
लोकहित का जो करे विस्तार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
हे विधि फिर सुवासित कर दो,
इस जग को अनुशासित कर दो,
हे दयामय फिर लौटा दो,
आंनंद उमंग और शिष्टाचार,
फ़ैल रहा है भ्रष्टाचार |
एक उत्तम रचना