प्रश्न नववधू का
नवयौवना ननदी से
-अनब्याही ननदी
“कईसे..खेलई जाऽबू
सावन मेँ कजरियाऽ..
होऽ…बदरियाऽ.. .
घिर आये ननदी?”
घिरते सावन मेँ
आँगन मेँ
वो जानी-पहचानी सी
स्वर लहरी
गूँज रही है
‘कजरी’
मंत्रमुग्ध सी
एक हरिणिनी
यह चंचलता!
वह आतुरता!
घुमड़े बादल
उमड़े बादल
बरस रहेँ हैँ
रिम-झिम,रिम-झिम
मन तरस रहा
प्रियतम,प्रेयसी को
मना रहा है
“प्रणय-निवेदन!”
लख रही सुलोचना
नैन दीप्त
हरियर-हरियर
सन्तुष्ट,तृप्त
मनुहार वही!
इनकार वही!
पोखर के तीरे-तीरे
वह वन तुलसी की सी सुगंध
हाथोँ मेँ थामेँ हाथ
सखियाँ
झूम रहीँ हैँ
सुर की यति-गति पर
होठेँ की हरकत
बतलाती है
वो ‘कजरी’ गातीँ हैँ
मुग्ध प्रकृति मेँ।
वो बड़ी नीम के
झूले पर
हलचल होती है
सुबह-सुबह ही
एक पेंग पड़ते ही
बन जाती
‘हवाई-जहाज’
डालेँ ईतरा जाती
पत्ते बिखरा जाती।।
बूँदेँ नाचती
उछल-उछल
छोटी मछली सी
कल-कल बहती नदियाँ
गाती है ‘कजरी’
लहरोँ की लय पर।।
बड़की बखरी मेँ
सास मुग्ध है
भौजाई की नोँक-झोँक
तकरार ननद से
मीठी है
पीहर आयी है
नव ब्याहता
सावन मेँ।
दूर कहीँ
एकान्त पलोँ मेँ
एक नायिका
नायक को
तन-मन अर्पण कर,
करती है
फिर वही अर्ज-
“ओ सईयाँऽ…
मेँहदीँ लियाई दऽ
मोतीझील से..
जाई के…
साईकिल से नाऽ”
आज
मेरे जनपद मेँ
‘कजरी’ है।।
शुभम् श्रीवास्तव ‘ओम’
शुभ प्रभात भाई शुभम्
इतनी अच्छी रचना
प्यार भी
उलाहना भी
ठिठोली भी
शिकायत भी
वर्जना भी
बेहतरीन संगम
अनुमति हो तो इसे अपनी धरोहर बना लूँ
सादर
यशोदा
जी अवश्य!
जी अवश्य यशोदा जी!
कृपया इस सौभाग्य से वंचित ना करेँ।
आपका बहुत-बहुत आभार!