वाद नहीं अपवाद हूँ मैं
फ़िर भी
विवाद नहीं, संवाद हूँ मैं ।
मन की मौज़, उर उन्माद मैं
उन्मुक्तता का नाद हूँ मैं ।
दुनिया धोके उदित भाष्कर,
मैं थके सूरज में प्राण फ़ूंकता
अवसर विशेष का लोभ त्यागकर
प्रतिपल का मंगल करता
प्रतिकूल के अनुकूलन में
प्रयत्न का प्रसाद हूँ मैं ।
पयोधि-प्रहार
लहर-ललकार से भगकर,
थाम ली पताका उनने
जो छिपे थे मस्तूल पकड़कर
प्रलय प्रलाप में भी प्रतिबद्ध
जूझती पतवार का निनाद हूँ मैं ।
मन मैला, उजले चेहरे
सियासत और सररकारी सेहरे
प्रबल-प्रपंची ही पाते संबल
निर्बल पर दृग-दल दोहरे
व्यस्थाओं की व्यथा में
आह का आह्लाद हूँ मैं ।