इस विजय पर्व पर
प्रवंचित दशानन का
विकल विद्रोह हुआ प्रबल
किया दाह विरोध
कहा –
धिक्कार है ,
अस्विकार है !
पुनरपि ध्वान्त आगमन
नहीं होता
’मैं’ से ’मैं’ का शमन,
यही भ्रम पराकाष्ठा
बनी मोक्ष आकांक्षा
अब
मेरे निर्वाण निमित्त
हे प्रपंची अपचारी !
तजो मुखोटे भारी
बनो निर्विकार पुरुषोत्तम
करो कार्य उत्तम
स्वागत है –
संधान करो,
शीघ्र करो
संसृति से मुक्त करो ।