जमाना बढता चला गया
हम गाल बजाते रह गए ।
हम गाल बजाते रह गए ।
भूमिका से ही भर दिए सफ़े सारे
और मज़मून कहीं पर खो गए ।
जमीं तो थी एक सी सारी मगर
पनरेला निकला कि किनारे बन गए ।
भूख नहीं कहने देती चाँद को चाँद,
बिलखते मासूम रोटी जो कह गए ।
चाँद पर चढ मंगल की तो गाने लगे
जमीं पर उतरे कि कदम लड़खड़ा गए ।
अंगूठियाँ बनीं जिन्दगी शकुन्तलाओं की,
प्रेम के ढाई अक्षर अब दर्द जो हो गए ।
आतिश बहुत है संग-ए-शोरिश में,
जलाने मशाल,जल कर राख हो गए ।