अर्थ के अर्थ में
जीवन के क्या अर्थ हुए ।
रसोइयाँ हुई स्याह / वीरान
और बाज़ार सज गए,
दो जिस्म, थे एक जान,
नदी के तट-बंध हुए ।
चिता पर सिकतीं रोटियाँ,
मज़ार पर बाज़ार लगे,
मज़लूमों की मज़बूरी,
ओहदेदारों के शौक हुए ।
अर्थवान समृद्ध बनने,
खण्डित कर घर परिवार,
नोटों का झाड़ उगाने,
हम घाणी के बैल हुए ।
अनाचार, दंभ, विलासिता,
परिवेश जनित जन्म-घुट्टी,
बचपन बना मशीन ,
और खिलौने बंदूक हुए ।
छोड़ संस्कार, शालीनता, शाँति,
जुटाते रुतबा, ताकत,
मन-रंजन, मति-भंजन से,
आदर्श सब रावण हुए ।