माँ तेरा यूँ पलट के आना अच्छा लगता है ,
डाटने के बाद यूँ हस के मनाना अच्छा लगता है,
आज इतनी दूर हो गयी हूँ तुमसे की,
तेरा यूँ तस्वीर में भी मुस्कुराना अच्छा लगता है।।
साथ में हम कितने खुश रहा करते थे,
दूर न हो कभी ये दुआ करते थे,
और फिर वक़्त ने कुछ यूँ करवट ली,
की हर पल तुघसे मिलने को तरसते थे।।
माँ तेरी तस्वीर में भी तेरी दुआ झलकती है,
तेरे जैसी माँ के लिए तो हर बेटी तरसती है,
चैन हूँ मैं तेरा, तू सुकून है मेरा ,
तभी तो हर रोज़ ये अँखियाँ बरसतीं हैं।।
माना की लौट के तेरे पास ही आना है,
फिर रुठुंगी मैं और तुघे ही मनाना है,
लेकिन फिर भी बहुत अकेली हूँ मैं,
और सामने खड़ा सारा ज़माना है।।
माँ तुघे यूँ याद करना बहुत अच्छा लगता है,
छोटी बातों पे तुघे परेशान करना अच्छा लगता है,
तेरे पास आके फिर रूठ जाउंगी मैं,
क्योंकि तेरा यूँ हस के मनाना अच्छा लगता है।।
सरल भाषा में लिखी गई मार्मिक रचना ,बधाई.