रचनाकार : मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी‘, पी० एण्ड टी० ३/२, मालवीय नगर, ऐशबाग,लखनऊ
(जब कोई बूढ़े लाचार माँ-बाप आश्रयहींन हो जाते हैं और बेटों द्वारा धिक्कारने फटकारने पर जब वह घर छोड़ देते हैं, तो मेरे हृदय में उन निराश्रित माँ-बाप की ओर से निम्नलिखित पंक्तियाँ/भाव आते हैं।)
“अपना मुख मोड़ लिया है ………………”
कौन कह रहा निज दायित्वों से- अपना मुख मोड़ लिया है।
यह सच है मैं बहुत दुखी हूँ- इसीलिए घर छोड़ दिया है।।
बेटे ही घर के कुल दीपक- बड़ा प्यार दे उनको पाला।
नैतिकता के उन्नत पथ के संस्कार- में उनको ढाला।।
कदम-कदम पर कष्ट उठाकर- नहीं कमी होने दी कोई।
फिर क्यों मुझसे निठुर हुए वे- और आत्मा मेरी रोई।।
सुखी रहें वे मेरी कामना- उनसे न होड़ किया है।
यह सच है मैं बहुत दुखी हूँ- इसीलिए घर छोड़ दिया है।।
जिनकी सुख सुविधा के खातिर- अपना जीवन होंम किया है।
न जाने क्यों आज उन्होंने- मुझको ऐसा सिला दिया है।।
पति-पत्नी में दुराभाव- बेटों के बदले हों तेवर।
कैसे खुश रह सकता कोई- घुटन भरे माहौल में क्षण भर।।
एक दुखी ने अपना नाता- कर्मयोग से जोड़ लिया है।
यह सच है मैं बहुत दुखी हूँ- इसीलिए घर छोड़ दिया है।।
गैर यहाँ अपने हो जाते- घर के लोग रहे ठुकराते।
निज कुटुम्ब पर क्यों इतराऊं- झूठे हैं सब रिश्ते नाते।।
जिसका जब तक निहित स्वार्थ है- तब तक वह उसका अनुयाई।
काम निकल जाने पर होता- नहीं किसी का कोई भाई।।
ममता मोह भूलकर मैनें- त्याग का बाना ओड़ लिया है।
यह सच है मैं बहुत दुखी हूँ- इसीलिए घर छोड़ दिया है।।
– मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी‘