बरकतों से नवाज़ा है उसने मुझे इस कदर,
या यूँ कहूँ कि खुदा की रहमत ही रहमत है I
चाह कर भी उनसे दूर नहीं हो सकते हम,
क्या करें हमें उनसे मोहब्बत ही मोहब्बत है I
वैसे तो समझते हैं सभी बेगाना हमें,
पर अपनों के लिए उल्फत ही उल्फत है I
यूँ तो समय नहीं अपने लिए भी, पास हमारे,
पर दोस्तों के लिए फुर्सत ही फुर्सत है I
करतें हैं कोशिश हर पल उन्हें खुश रखने की,
पर हमसे, उन्हें तो शिकायत ही शिकायत है I
खुदा बचाए उनकी नज़रों से दिल को हमारे,
अदाओं में उनकी बस नज़ाकत ही नज़ाकत है I
कहता नहीं कभी झूठ की बुनियाद पर बात “चरन ”
मैं आईना,वो अक्स, जी हाँ हकीकत ही हकीकत है II
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गुरचरन मेह्ता