बहनो का सिंदूर छीना है
माताओ का लाल
ऐ वैरी तू कायर बन
छिप छिप करता वार
लडना है तो
मैदानों में खुले आम आ कर के देख
चीर के रख देंगे
नक्शे से मिट जायेगा नाम
वीर शहीदों की विधवाओं के
आंसू में तू बह जायेगा
जिस माता का लाल मिटा
उसका श्राप तूझे खायेगा
छिप ले जितना छिपना तुझको
काल तेरा भी आयेगा
वीर नहीं है मरे वतन के
चाहे हो नेता गददार……..
-सत्येन्द्र कात्यायन
अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के …..बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ….शुक्रवारीय अंक…. पर भी होगी!
सादर…!