रोशनी सूरज की ढलान पर है
परिन्दा लौटती उडान पर है
चेहरा हो गया मायूस उसका
निगाह आ गये मेहमान पर है
फिकरमन्द झोपडी टूटी है जिसकी
दरिया फिर दीखती उफान पर है
बच्चा भूखा ही सो गया होगा
बेबसी मां की फिर जुबान पर है
दरिन्दगी किस तरह से हावी है
जिन्दगी रोज इम्तहान पर है
तासीर सच की कम हो गयी होगी
झूठ की शान हर जुबान पर है
जद्दोजहद उम्र भर की रोटी के लिये
आज भी आखिरी मुकाम पर है
सियासत आसमान की पुष्पक
जमीन खतरे के निशान पर है