ग़ज़ल (दिल की दास्ताँ)
मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है
किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है
चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है
किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है
दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है
क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है
ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना
वाह सक्सेना जी वाह आप की इस गजल को मै क्या कहूं ?
ये गजल है या फरिस्तो का कँवल है |
या फिर खुदा की खुदाई का ताजमहल है ||
सक्सेना जी कृपा करके मुझसे इन मोबिल नम्बरों पर संपर्क करें
9582510029 ,09412224548 हम तो आप जैसे साहित्यकार से मिलकर धन्य हो जायेगें ||