जीवन छोटा बड़ी आशाएँ,
अभिलाषाएं जीवन की ज्यादा,
आकांक्षा और अपेक्षाएँ सबकी, ना जाने
पूरी होगी कैसे ? कहने को राहें खूब, मगर
दिखती दूर तक एक नहीं, क्या मेरे लिए ही
सूनी हो गयी है ये महि ? आखिर कब तक यूं जग में,
भटकूंगा मैं एक अकेला, अंत कभी क्या नहीं होगा इस भटकन का,
क्यों हो रह संग मेरे, यह अन्याय,
समझ नहीं पाया मैं अब तक।
शिकवा नहीं था कल तक जीवन से,
पर आज शिकायत है भगवन से, क्यों कर
किया पैदा मुझे इस असहज जगत में असमय,
गर जन्म दिया तो क्यों नहीं फिर दिये पूरे साधन ओ संसाधन,
दी पर केवल आकांक्षाए अभिलाषाएं पर नहीं दिया संबल इन सबको
पूरा करने का,
क्या गलती थी मेरी जो भेज दिया इस जग से लड़ने को,
निशस्त्र और नि:सहाय,
जग में अपनों से लड़ने को।।
साधन थोड़े, संसाधन कम है,
जीने के लिए आत्मा अक्षम है,
दो अब तो संबल प्रभु, या आप
बुला लो अब मुझको, हार गया मैं,
लड़ते-लड़ते अपनों से अपने-आप से।।
या राह सुझा दो तुम ऐसी,
पार पा सकूँ इस जहां से अंत पहुंचू
उस पावन-पद-रज में, मिली नहीं जो किसी को जग में,
मिली नहीं जो किसी को जग में,
मिली नहीं जो किसी को जग में।।
मनोज चारण
मो. 9414582964
rachnaa dard bayaan kartee hain bhaav atyant sundar hain.
मनोज जी क्या खूब लिखा है |वाह |
फिर भी हमारा कहना है |
शायरों की हार को भी हम नौलाख्ना हार कहते है |
दर्द कोई कितना दे फिर भी शायर उसे सरकार कहते है |
और भी
न हो साथ कोई अकेले बढो तुम सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी |