बन्नो मेरी कैसे भेजूं तुझे ससुराल,
क्या रख पाएगा तेरा बन्ना तेरा मुझ सा खयाल !!
तू है मासूम कली सी कोमल,
मुरझा जाएगी जब देखेगी इस दुनिया मे मर्दो का रूप विकराल,
तेरे सपने है कितने बड़े कितने विशाल,
कैसे चुनूं कोई ऐसा जो लगाये तेरे सपनो को गुलाल !!
हर बात मान लेती है सबकी कभी करती नही सवाल,
इसलिये मुशकिल है बड़ा तेरे लिये खोजना तेरे जैसा लाल !!
तेरे आंचल को भर दे देकर खुशियों के थाल,
तेरा भरोसा ना तोड़े, जो बने हर मुसीबत मे तेरी ढाल,
कहां मिलेगा ऐसा वर बता दे महाकाल,
अब तो लगता है पड गया है अच्छे इन्सानों का आकाल !!
चल मिलके ढूढे ऐसा बन्ना जो मिलाये तेरा ताल से ताल,
पर तब तक बन्नो मेरी बस तू रखना खुद को सम्भाल !!
वाह मुस्कान जी आपकी इस रचना की तारीफ़ नहीं करूंगा,
क्यूंकि तारीफ़ के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.