सब के सब बड़े हो गए, सभी स्याने – हो गए
हमारा क्या, हम तो अब किस्से पुराने – हो गए
अपनी हस्ती को रोंदा खुद ही हमने पैरों तले
तभी तो जनाब गुलशन वीराने – हो गए
कितना था यकीन हमें वे आयेंगे जरुर
उनके लिए भी तैयार अब बहाने – हो गए
जाने क्या सोचकर देखा था उन्होंने यूँ ही हमें
और हम , कसम से, उनके दीवाने – हो गए
गाँव की जिन गलियों में बचपन गुजारा हमने
आज वही रास्ते हमारे लिए अन्जाने – हो गए
सोचते थे पछाड़ दिया है हमने सभी को यहाँ
पर उस मक्कार से हम भी चित्त चारों खाने – हो गए
वो करते थे तारीफें हमारी दिल खोलकर कभी
वही कहते हैं कि आज हम बचकाने – हो गए
आप शायरी करती हैं कि तीर चलाती हैं
आपके तो गज़ब के निशाने – हो गए
लड़कपन का उलाहना मिलता था माँ-बाप को अक्सर
आज वही माता पिता बच्चों के लिए उलाहने – हो गए
किस्मत हमारी भी संवर सकती थी जो वो चाहता
जो ज़माने भर के नज़ारें हमारें लिए बेगाने – हो गए
जिन रिश्तों को समझतें थे हम जन्मों का बंधन “चरन”
आज वही रिश्ते उनके लिए बस जिस्माने – हो गए
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गुरचरन मेह्ता
सत्य वचन गुर्चरन जी