मुझको मिली एक परी,
आसमान से जो गिरी,
चंदा भी मुँह ताक रहा है.
चोरी-चोरी आँख लड़ी,
आँख लड़ी बात बढ़ी,
खुद पे हमें नाज़ हुआ है.
कैसे बताऊँ मैं हाल दिल का कुछ भी समझ में ना आय,
आ आ कर ख्वाब में वो रात भर जगाय.
मुझको……….आसमान……….चंदा…………..
चोरी…………..आँख……………खुद पे…………….
कैसे……………………. आ आ कर …………………
(1)चेहरे पे नूर है वो खुबसूरत जैसे फिजा नवजवाँ है,
जलवों में सिमटी है वो सादगी के जैसे कोई बचपना है,
महसूस कर लूँ मैं उन रास्तों को जिनसे तू एक बार गुजरे,
मै भी खड़ा हूँ उन्ही रास्तों में कहीं पे ज़रा देख मुड़के,
दिल पे लगी एक परी,
आसमान से जो गिरी,
रिश्ता दिल का जुड़ रहा है,
चोरी…………..आँख……………खुद पे…………….
कैसे……………………. आ आ कर ………………..
(2)ऐसी हँसी कि सौ रंग बिखेरे तितलियों की कोई लड़ी है,
जुल्फों में उतारी है वो बदलियाँ कि सावन कि पहली झड़ी है,
मासूमियत है अदाओं में इतनी यकीं ना हो लगे कल्पना है,
जैसे खुदा इस जहाँ को भुलाकर सिर्फ तुम्ही पे मेहरबान है,
जिद पे बनी एक परी,
आसमान से जो गिरी,
कैसे कहूँ कैसे हुआ है,
चोरी…………..आँख……………खुद पे……………..
कैसे……………………. आ आ कर ………………….
:-सुहानता ‘शिकन’
(17 .07 .2013)