खूबसूरत तो मैं हूं
मैंने मु़द्धत से आइना नही देखा पर… लोग कहते हैं…मैं खूबसूरत हॅं मेरी आंखें बोलती है पर…क्यों नहीं पढ पाये थे वो मेरी आॅखों की परिभाशा को जब मेरे सच को झूठ कर दिया था जमाने ने…………….
मैने अपने होठों को सील लिया तभी से जब लोगों ने बताया कि… मेरी आवाज से षहद टपकता है मैं डर गयी कि कहीं द्यूल न जाये इस मिठास में जहर उन फिजाओं का,जो फैल रहा है आज हवाओं में मोहब्बत के नाम पर।
मैंने छोड दिया बांयना पांव में झांझर को कि कहीं भटक न जाये कोई इसकी आवाज में ओैर बदनाम हो जाये मेरे द्यूंद्यरू….
मैंने आंखों से निकाल दिया काजल को आंसू बना कि…. ये दिन को रात कर देते थे और..उन रातों में हो जाते थे गुनाह हुस्न के नाम पर।
मैंने जुल्फों के साथ गूंथ लिये अपने हर वो ख्बाब…. जो खुलते थे उसके आसमां की तरफ आज… मैं कुछ भी नहीं पर…. फिर भी लोग कहते है… बहुत कुछ है मुझमें खामोष रहकर भी सुनने के लिये बंद आॅखों से देखने के लिये कि …, खूबसूरत तो मैं हॅू ………….
Bahut khub janab padhkar achh laga.
thanks mr m k giri aapke feedback muge or aachha sochne ko prarit karte hain
ati sundar bhaav :क्यों नहीं पढ पाये थे वो मेरी आॅखों की परिभाशा को जब मेरे सच को झूठ कर दिया था जमाने ने…………….
thank you muskan aapne kavita ko pasend kiya