अब तो तुम संग जिन्दगी बिताने का इरादा है
जो नहीं तो कसम से फिर, मर जाने का इरादा है
जल रहे हैं दीपक क्यूँ आँधियों में इस तरह
चले आओ कि दीपक बुझाने का इरादा है
तुम्ही हो इबादत मेरी तुम्ही हो बंदगी मेरी
किया है जो वादा तो निभाने का इरादा है
सावन की वर्षा में तो भीगे हैं हम कई बार
अब बिन मौसम बादल बरसाने का इरादा है
बगिया महकने लगी , कोयल चहकने लगी
उठो नीद से अब कि तुम्हे जगाने का इरादा है
माफ़ करना, बिन दस्तक चले आये दिल में तुम्हारे
कि खुद को तुम्हारे दिल में बसाने का इरादा है
कैसे जीयें अब एक पल भी साकी तुम्हारे बिन हम
कि दिल की बात तुम तक पंहुचाने का इरादा है
कई बार लिखा है दिल की बात को हमने ख़त में
पर अब तो रूबरू आपको कुछ सुनाने का इरादा है
कितना भी संभले हम, पर दर्द है कि जाता नहीं
कि दर्दे-ए-दिल अब तो कलेजे से लगाने का इरादा है
आपकी बातें तो दिल पर काँटा सा चुभोती है “चरन”
इसलिए यह ख्याल पलकों पर सजाने का इरादा है
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गुरचरन मेह्ता
jawab nahi mehta ji………………….jari rakhen………….
Dhanyavaad janaab shikan jee.