मै जिन्दा भी नही
बहुत दूर तक मै देखता ही नही हू ,
और पास कुछ नजर आत भी नही ।
रह रह के वहम हो उठता है,
कही चारो तरफ अ`धेरा तो नही ॥
उनको सोचना छोड दिया आजकल,
और गैरो को याद करके फायदा भी कया ?
रह-रह के लेकिन ये खयाल हो उठता है,
उनका छोड के जाना, बुरा सपना तो नही॥
दस्त्खो पै आजकल मै ध्यान देता नही,
कइ बार दौडा दरवाजे, कोइ रहता ही नही ।
शायद रह-रह के कान बज उठते है मेरे,
ये सोच दौडता हु, कही कोइ अपना तो नही ॥
अलग-अलग ही रहता हु, मै जरा भीड से,
उसके बिना भीड मे, हसने का मजा ही नही ॥
बहुत हसता था मै जमाने भर के दीवानो पै,
बदले मे कही ये उस बात की सजा तो नही ॥