तीर ताने है शिकारी आड में
और परिन्दे हैं खुले आकाश में ।
दोस्तों को भूलना मुमकिन कहां
दर्द इतना दे गये सौगात में ।
फूल पर उनका हमेशा हक रहा
सिर्फ कांटे ही हमारे हाथ में ।
मर गया एक आदमी फुटपाथ पर
भूख का टुकडा लिये था हाथ में ।
हम अन्धेरे मे भी मन्जिल पायेंगें
सच अगर होगा हमारी बात में ।
“दास” अपने आप मे सिमटो नहीं
कद कभी मिलता नहीं खैरात में ।
शिव चरण दास
bahoot khoob daasji.
Bahut badhiya Shiv Charan ji. Excellent!
बहुत संवेदनशील रचना है आपकी।