ज़िन्दगी क्या है हम नहीं समझ पाए,
क्या है ये जीवन हम नहीं जान पाए !!
हंसना है यहाँ रोना भी हमीं को है
आज हम है यहाँ कल कहाँ होना है !!
जाने ऐसा क्यों है !!
कहीं यारों का मेला है, कहीं कोई अकेला है,
कोई चाहत को तरसा है कोई नखरों में पलता है !!
किसी की आँखों में आंसूं हैं कोई हंसता हंसाता है ,
जाने ऐसा क्यों है !!
हंसाता है जितना है उतना ही वो रुलाता है,
सुख जितना मिलता है यहाँ, उतना ही दुःख भी मिलता है !!
जाने ऐसा क्यों है !!
तकदीर है हाथों में फिर भी इंसान उसे बदल नहीं पाता है,
लिखा है जितना जिसके लिए उतना ही इस दुनिया में मिलता है !!
1 June 2013
बहुत ही अच्छी रचना है .
लेकिन जिन्दगी बहुत ही खूबसूरत है
बस देखने का नज़रिया अलग-अलग है
कहीं मुस्कान होती है कहीं आंसू भतेरे हैं
कहीं गहरा समंदर है तो मौजों के थपेड़े है
कहीं सुख की भी वर्षा है, कहीं दुःख का है सुखा भी
ये तो कर्मों का लेखा है, तेरे है कि मेरे है.
behtarin rachana hai muskan ji.zindagi to apna rang roop badalati hi rehati hai.isake sare rango ka maza lijiye.