कागज़ पे लिखूं कैसे खुद को ,
अरमानों का मैं काफिला हूँ !!
लव्जों को करूँ कैद कैसे ,
मैं उडती हुई मैना हूँ !!
महफ़िल रास आई न मुझको,
तन्हाई का वो आंसू हूँ !!
ढूँढती है बहारों का रास्ता,
मैं वो पतझड़ की रेत हूँ !!
सुर न लगाए किसी ने,
मैं वो बेगाना साज़ हूँ !!
सवाल हैं जिसके अधूरे
ऐसी अनदेखी किताब हूँ !!
तलाश सुकून की है जिसको,
मैं वो तूफानी लहर हूँ !!
मालूम नहीं मंजिल की डगर जिसको,
मैं वही अनजानी मुसाफिर हूँ!!
1 June 2013
महफ़िल रास आई न मुझको,
तन्हाई का वो आंसू हूँ !!
इतनी अच्छी रचना लिखती हो
तुम तो कविताओं की पूरी दूकान हो
खुद को कहती हो तन्हाई का आंसू
अरे तुम आंसू नहीं “मुस्कान” हो.
बहुत बहुत शुक्रिया गुर्चरन जी !!
आपकी लिखी पन्क्तियां सच मे दिल में उतर जाती है,
इस अदना से आन्सु की तारीफ करने का बहुत बहुत धन्यवाद !!
BAHUT KHUB HAI MUSKAN JI………………