तुम मेरी जीवनधारा हो
तुम ही साँसों की माला।
तुम ही हो इस हिय का स्पंदन
तुम ही आँखों की ज्वाला।
यदि ‘हिमांशु’ में ‘रश्मि’ नहीं
हर रात अँधेरी हो जाती,
पूनम की बातें फिर कैसे
करता कोई मतवाला?
उस मतवाले की बिनती पर,
प्रभु ने चित्र बना डाला।
हो ‘हिमांशु’ में ‘रश्मि’ अगर,
तो कहाँ रहेगा अँधियारा?
अँधेरे की व्यापकता को
छिन्न-भिन्न कर डालेगा
हो ‘हिमांशु’ जब ‘निशा-हृदय’ में
होगा मधुमय उजियारा।
उस मधुमय चांदनी रात में,
सागर-तट से फैले हों।
एक गगन में, एक धरा पर,
दो ‘हिमांशु’, दो ‘रश्मि’ हों।
तन का, मन का, इस जीवन का,
एक ध्येय हो, पूर्ण-विलय।
जहाँ प्रेम सीमा को छू ले,
वहाँ प्रेम हम शुरू करें।
– हिमांशु
bht khoob !! apne dil kii bhawnaaon ko shabdon ka roop diyaa hai !!
यदि ‘हिमांशु’ में ‘रश्मि’ नहीं
हर रात अँधेरी हो जाती,
पूनम की बातें फिर कैसे
करता कोई मतवाला?
yeh milan sadaa banaa rahe 🙂
Dhanyavaad 🙂