खादीधारी खच्चर देखो, आओ तुम को दिखलाते हैं।
ये बकरा राजनीति का है, इससे तुमको मिलवाते हैं।
कुर्ता-धोती सब खादी की, ‘गाँधी’ की टोपी डाली है।
हाथों में ‘मोबाईल’ साजे, पिस्तौल जेब में भारी है।
‘गंगा’ दायें, ‘जमुना’ बायें, ये नदी नहीं हैं, नारी हैं।
नेताजी का यह ‘धर्मभोग’ हर ‘कर्मयोग’ पर भारी है।
अंधेर मुनासिब है लेकिन, यहाँ देर नहीं हो सकती है।
जितना लाओ उतना पाओ, गाड़ी ऐसे ही चलती है।
जो सच्चे मन से आता है, नोटों की गड्डी लाता है।
‘विदेशी’ हो या ‘स्वदेशी’, ‘टेंडर’ तो वो ही पाता है।
– हिमांशु