कल मैंने सड़क के साँप को देखा था ।
सच कहूँ तो भारतवर्ष के पाप को देखा था ।
मैंने हाथ जोड़कर कहा, “महोदय नमस्कार !
यहाँ खड़े-खड़े कर रहे हैं क्या किसीका इंतज़ार ?
तपती दुपहरी में किसको डंसने जा रहे हैं?
यह भी बतलाइए हुज़ूर कहाँ से तशरीफ़ ला रहे हैं?”
वे बोले, “अजी आप तो सवालों का पुलिंदा बना रहे हैं ।
अखब़ारनवीसों की तरह इंटरव्यू लिए जा रहे हैं ।
फ़िलहाल तो हम मुख्यमंत्री जी के घर जा रहे हैं ।
समर्थन देने के बदले दो पेट्रोल पंप लेने जा रहे हैं ।
वरना समर्थन वापसी का सिद्धांत भी तो रेडी है ।
हमने तो विपक्ष से टिकट भी पक्की कर ली है ।”
हमने सकपकाकर पूछा, “मग़र आप समर्थन वापस लेंगे किस मुद्दे पर,
आपने तो बड़े जोश से कहा था, सरकार चलेगी पूरे पांच साल तक ।”
वे बोले, “बर्खुरदार, तुमको राजनीती में कुछ नहीं है आता ।
जानते भी हो नेताओं और साँप में क्या है समानता ।
ज़हर-बुझे दाँत और दो-मुही ज़बान हमने साँपों से छीनी है ।
और दूध पिलाने वाले को काटना हमारी आदत पुरानी है ।
और फ़िर क़ानून-व्यवस्था ख़राब करने में समय ही कितना लगता है ।
एक दंगा करवाने में लाख, दो लाख का ही तो ख़र्चा है ।”
हमने कहा, “नेताजी आप जनता को कब तक बेवकूफ़ बनायेंगे ।
एक न एक दिन तो क़ानून के शिकंजे में आयेंगे ।”
वे बोले, “बेवक़ूफ़, साँप कभी जाल से नहीं पकड़ा जाता ।
और फ़िर क़ानून के तो हर जाल से निकलने का है कोई रास्ता।
हम जैसे साँपों को पकड़ना है तो पहले साक्षरता का फंदा बनाओ।
जनता को भले-बुरे की पहचान, और उनके वोट की अहमियत समझाओ ।
उन्हें समझाओ की नेता धर्म और जाति के नाम पर नहीं चुना जा सकता ।
और कोई भी जाति या धर्म देश से बड़ा नहीं हो सकता ।
जिस दिन लोग इस बात को समझ जायेंगे ।
उस दिन हमारे ज़हरीले दाँत ख़ुद-ब-ख़ुद टूट जायेंगे ।”
हमने कहा, “नेताजी, वो दिन भी बहुत जल्द आने वाला है ।
आपकी करतूतों से जनता के ह्रदय में धधक रही ज्वाला है ।
जिस दिन इस ज्वालामुखी का मुंह खुलेगा,
सच कहता हूँ नेताजी, इस धरती पर कोई साँप नहीं बचेगा ।
उस दिन इस देश से जंगल का राज मिटेगा ।
और सही मायनों में तभी हमें पूर्ण स्वराज मिलेगा ।
और सही मायनों में तभी हमें पूर्ण स्वराज मिलेगा ।”
– हिमांशु
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धन्यवाद!
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