मै क्या हूँ, कुछ भी तो नहीं
जो कुछ है मेरी हस्ती है
मै नहीं रुक पाती संग किसी के
मेरी हस्ती ही सबकी यादों में बस्ती है
मेरी हस्ती के हैं रंग रूप कई
इसके अपने है छाँव-धुप कई
कभी मेरी खुशियाँ बनती इसकी मस्ती है
कभी मेरे गम लगती इसको सस्ती हैकभी आईने की ओट में
छुप छुप कर ये मुझ पर हँसती है
जिंदगी के मजधार में कभी ये
बन जाती मेरी कश्ती हैकहती है ये मुझसे,
इसके अपने है छाँव-धुप कई
कभी मेरी खुशियाँ बनती इसकी मस्ती है
कभी मेरे गम लगती इसको सस्ती हैकभी आईने की ओट में
छुप छुप कर ये मुझ पर हँसती है
जिंदगी के मजधार में कभी ये
बन जाती मेरी कश्ती हैकहती है ये मुझसे,
मै हवा का कोई झोंका नहीं
ना ही बारिश की बूंद हूँ
ना हूँ मै मंजिल किसी के ख्वाब की
बस तेरे ही सपनो की उम्मीद हूँ
मै क्या हूँ कुछ भी तो नहीं
तेरे ही वजूद की परछाई हूँ
तेरी जिंदगी है तो मै भी हूँ
वरना इस दुनिया से तो मै पराई हूँ
– प्रीती श्रीवास्तव ‘पर्ल’