मैं तो सपने में कोई ग़ज़ल पढ़ गया ।
मेरी खुशियों का प्यारा कँवल खिल गया ।
ज़िन्दगी मेरी रौशन हुई इस तरह ।
मानों सपनों का कोई महल मिल गया ।
मैं कहाँ हूँ कहाँ मेरे अरमान हैं ।
सारी जन्नत ही मुझपे मेहरबान है ।
सोचता हूँ कभी मैं कहाँ आ गया ।
इस ज़मीं पर मुझे कौन पहुंचा गया ।
तार वीणा के देखो सभी बज उठे ।
सारे अरमान देखो अभी सज उठे ।
ज़िन्दगी कुछ नए रंग भरने लगी ।
तूलिका साथ रंगों के चलने लगी ।
सारा संसार मानो है गुलशन हुआ ।
मेरा मन भी लगे मानो चन्दन हुआ ।
खुशियाँ हैं हर तरफ़ ग़म नहीं हैं कहीं ।
ऐसा लगता ये दुनिया हुई जन्नती ।
हाय यह क्या, प्रलय देखो आने लगी ।
मेरा संसार देखो डुबाने लगी ।
एक झटका मुझे जाने कैसा लगा ।
मेरी आँखें खुलीं, मैं तभी जग गया ।
एक पल में न जाने ये क्या हो गया ।
मेरा संसार जाने कहाँ खो गया ?
गुलशन तो क्या, कहीं फूल दीखते नहीं ।
डालियाँ सूखी देखो खड़ी रो रहीं ।
मीठे सपनों से किसने जगाया मुझे ?
फिर से लौटा यहाँ कौन लाया मुझे ?
सिर्फ़ सपने ही अपने रहे अब यहाँ ।
मुझको दिखता नहीं अब कोई मेहरबां ।
काश, दुनिया भी सपनों के जैसी बने ।
ग़म नहीं सिर्फ़ खुशियों के जैसी बने ।
झोली फैलाके मैं हूँ तुझे कह रहा,
“ऐसे सपनों को या ऱब हक़ीक़त बना ।
जिस से ऐसी ही दुनिया में जाऊं चला ।
खुशियाँ हों हर तरफ़ दिल कँवल हों जहाँ ।
– हिमांशु