जीने का मौका तुम दे दो मुझे ।
शायद फिर जीवन मिले ना मिले ।
कहती रहो तुम मैं सुनता रहूँ,
के जीने की फ़ुर्सत रही अब किसे ।
चाहे तो ये वक़्त अब ना बढ़े ।
चाहे तो मौसम बदलता रहे ।
चाहे ख़ुदा भेज दे ज़लज़ले,
के जीने की फ़ुर्सत रही अब किसे ।
चाहे ये तूफ़ान की रात हो ।
चाहे ये काँटों भरा ताज हो ।
चाहे मुकद्दर बने या मिटे,
के जीने की फ़ुर्सत रही अब किसे ।
चाहे दवा या दुआ दो मुझे ।
चाहे तो जीवन-सुधा दो मुझे ।
विष दो या अमृत पिला दो मुझे,
के जीने की फ़ुर्सत रही अब किसे ।
ये जीवन मुहोब्बत का आग़ाज़ है ।
ये जीवन एक टूटा हुआ साज़ है ।
ये जीवन का सागर डुबो ले मुझे,
के जीने की फ़ुर्सत रही अब किसे ।
– हिमांशु