काली रजनी घनघोर रात
हम प्रथम पहर की करें बात,
सब नेत्र लगे भारत-भू पर
सो रही न कोई कहीं आँख ।
चौदह अगस्त की रजनी वह,
सन्नाटे में था खग-कलरव ।
जीवन था किये मौन धारण,
उस रात, रात भी थी नीरव ।
वह मौन नहीं था मौन किन्तु
था एक प्रलय का वह संकेत ।
वह रात्रि नहीं थी रात्रि वरन,
युग मध्य विभाजक-रेख एक ।
वह अंत दासता के युग का,
दो शतियों की घनघोर रात ।
था वही चेतना का स्वर भी,
अरुणिम स्वतंत्रता का प्रभात ।
बेड़ियाँ कटीं भारत माँ की,
मिल किया सभी ने सिंहनाद ।
पर नेत्र सभी थे अश्रुपूर्ण,
था सबके हृदयों में विषाद ।
कारण यह एक बांह सबकी
लगती थी मानो कटी हुई ।
थी भूमि जो सबको मात्रतुल्य,
वह दिखती थी अब बंटी हुई ।
दो देश अलग जन्मे उस दिन,
दो अलग सभ्यतायें जन्मीं ।
जड़ एक तना भी एक किन्तु
अब भिन्न-भिन्न शाखा पनपीं ।
थे पुष्प सभी एक पादप के,
पर भिन्न-भिन्न शाखाओं पर ।
घर में दीवार उठी थी अब
भाई-भाई में था अंतर ।
लेखनी नहीं दे साथ रही
कैसे वर्णित हो वह विषाद ।
कल्पना मूर्त जब होती है
उर पर होता है वज्रपात ।
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
वह गहन अंध रजनी बीती,
आया जीवन का नव प्रभात ।
सन उन्नीस सौ सैंतालिस का
पंद्रह अगस्त शुभ दिवस आज ।
खग कलरव में आनंद भरा,
हर कली-सुमन मकरंद भरा,
सब हृदयों में आनंद भरा,
फिर मारुति बहा सुगंध भरा ।
जयनाद लगे करने सब जन
खिल उठे पुनः सब निर्जन मन
जड़ प्रकृति हुई उस दिन चेतन
जी उठा पुनः मानो जीवन ।
स्वतन्त्र भारती माता का
मिलकर सबने श्रृंगार किया,
फिर देख राष्ट्र-हित ‘नेहरु’ ने
अग्रिम पद अंगीकार किया ।
‘वल्लभभाई’ ने पूर्ण किया
गृहकार्य अभी जो था बाकी ।
छह सौ पुष्पों से महक उठी
भारत माँ की अनुपम झांकी ।
ली शपथ सभी ने तब मिलकर
तन-मन-धन-जीवन अर्पण कर
हम सेवा करें भारती की
अपनी खुशियों की बलि देकर ।
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
अध्याय पुराना पूर्ण हुआ,
अब वर्तमान में चलते हैं ।
पंद्रह अगस्त जो आज मना
कुछ उसकी गाथा कहते हैं ।
पंद्रह अगस्त निर्मूल हुआ,
भूले कुर्बानी वीरों की ।
रत्नों से खली हुई भूमि,
पहचान गयी क्या हीरों की ?
पतनोंमुखी हम बने आज,
नित नीचे गिरते जाते हैं ।
बंदी सिंहों जैसे अपनी
पहचान भूलते जाते हैं ।
शत नमन करे जिस भूमि को
सूरज सबसे पहले आकर ।
धिक् उसी भूमि के वंशज हम
सोते हैं निद्रा में भरकर ।
लें शपथ अभी हम सब मिलकर
तन-मन-धन-जीवन अर्पण कर
हम सेवा करें भारती की
अपनी खुशियों की बलि देकर ।
उन्नति हो भारत माता की,
मिलकर हम सब वह यत्न करें ।
शुभकर्म करें ऐसे जिनसे,
पंद्रह अगस्त शुभ पर्व बने ।
– हिमांशु