ज़िन्दगी से मेरा प्यार ये देखकर,
मौत ने भी तो मुझको दग़ा दे दिया I
घर से निकला था बाग़ों की सैर करूं,
आई आंधी भी ऐसी कि कुछ न रहा I
सोचता था ज़माना मेरे साथ है,
हमसफ़र पर मेरा साया भी न बना I
आसमां की बुलंदी पे था मैं खड़ा,
जो गिरा तो ज़मीं पे आसरा ना मिला I
लोग कहते हैं होती है पूरी रज़ा,
पर मेरे साथ तो ख़ुद ख़ुदा ना रहा I
दुश्मनों से नहीं है मुझे अब गिला,
क्या कहूं जो मिला दोस्तों से मिला I
मैं तो आंधी से तूफां से लड़ता रहा,
कश्ती डूबी जहाँ पानी कुछ भी न था I
ऐ मेरे दोस्तों, तुम को इतना सबक,
जो लुटा बस यहाँ दोस्ती में लुटा I
– हिमांशु