एक दर्द सा दिल में रहता है ।
एक टीस सी मन में रहती है ।
तेरा नाम में लूं, तुझे याद करूं
बस यही तमन्ना रहती है ।
इस ग़म के गहरे सागर में
कश्ती को बढ़ाये जाता हूँ ।
पतवार न साहिल है कोई
माझी को बुलाये जाता हूँ ।
मैं तुम्हें ढूँढता रहता हूँ
सारी क़ायनात के जलवों में ।
कभी फूलों में हंसती हो तुम
कभी मुस्काती हो कलियों में ।
इन अन्जानी राहों पर मैं
तेरा पता पूछता रहता हूँ ।
जो निशां कदम के हैं तेरे
बस उन्हें ढूँढता रहता हूँ ।
ना जाने कब तक भटकूँगा,
इस ग़म के गहरे सागर में ।
जाने कब मंज़िल पाऊंगा,
इन अन्जानी सी राहों में ।
ढूँढता रहूँगा तुमको मैं
मंज़िल मैं पाऊं ना पाऊं ।
मेरा इन्तज़ार करना तब तक
मैं तुम्हें ढूँढने जब आऊं ।
– हिमांशु