लड़की, नारी, स्त्री
इन नामो से जानी जाती है
कई उपाधियाँ भी है
बेटी, पत्नी, माँ
अनेक रूपो मे नज़र आती है
पहले घर की रौशनी कहा
तो आँखो के नीचे काला स्याह क्यों?
निर्भया, दामिनी, वीरा भी कहा
पर तब जब कुछ लोगो ने अपनी
पाशविकता का प्रमाण भी दिया
कुछ ने तो परी कहा
परियो से पंख भी दे डाले
जब उनके उड़ने की बारी आई
वही पंख किसी ने काट डाले
ऐसे समाज से आज भी
करती वो निर्वाह क्यों?
लड़की का पिता अपना
सबसे मूल्यवान धन दान कर
कर जोड़े खड़ा है
उधर लड़के की माँ को
लड़के की माँ होने का
झूठा नाज़ बड़ा है
झूठा इसलिए की
उसकी संतान के लिंग निधारण मे
उसका कोई योगदान नही है
तो क्या लड़की के पिता का
कोई स्वाभिमान नही है?
पिता का आँगन छोड़कर
नया संसार बसाया है
माँ के आँचल की छाँव कहाँ
“माँ जैसी” ने भी रुलाया है
रुलाने का कारण?
आज उके बेटे ने
किसी दूसरी औरत को
प्यार से बुलाया है
आज वो इक माँ है
उस पीड़ा की गवाह है
जो उसकी माँ ने कभी
झूठी मुस्कान से दबाया था
बेटी के पैदा होने पर
कब किसने गीत गया था
पति के चले जाने के बाद
माथे की लाली मिटा दी लोगो ने
वो लाली जो उसके मुख का गौरव था
उसे कुलटा, मनहूस कहा
क्या सिर्फ़ पति ही
उसके जीवन का एकमात्र सौरभ था
शीघ्र ही वो दिवस भी आएगा
जब हरयाणा और राजस्थान की तरह
सारे विश्व से विलुप्त हो जाएगी ये “प्रजाति”
फिर राजा यज्ञ करवाएँगे
पुत्री रत्न पाने हेतु
राजकुमारियाँ सोने के पलनो मे पलेंगी
स्वयंवर रचाएँगी,
अपने सपनो के राजकुमार से
फिर द्रौपदी के पाँच पति होने पर
कोई सवाल ना कर सकेगा
उसके चरित्र पर कोई
टिप्पणी नही होगी
नारी को तब कोई भी
“वस्तु” नही कहेगा
संवेदनशील इस चाह को
“तथास्तु” ही कहेगा
सुलोचना वर्मा
Waah Waah Sulochna jii is samaaj kii ek kadwii sachhhai ko itnii saraltaa se bayaan karne ke liye bht bht badhaai:
उधर लड़के की माँ को
लड़के की माँ होने का
झूठा नाज़ बड़ा है
झूठा इसलिए की
उसकी संतान के लिंग निधारण मे
उसका कोई योगदान नही है
तो क्या लड़की के पिता का
कोई स्वाभिमान नही है?
Ati sundar !!
बहुत अच्छी लिखी है।