आसमान की बाँहो मे
प्यारा सा वो चाँद
ना जाने मुझे क्यों मेरे
साथी सा लग रहा है
खामोश है वो भी
खामोश हूँ मैं भी
सहमा है वो भी
सहमी हूँ मैं भी
कुछ दाग उसके सीने पर
कुछ दाग मेरे सीने पर
जल रहा है वो भी
जल रही हूँ मैं भी
कुछ बादल उसे ढँके हुए
और कुछ मुझे भी
सारी रात वो जागा है
और साथ मे मैं भी
मेरे आस्तित्व मे शामिल है वो
सुख मे और दुख मे भी
फिर भी वो आसमाँ का चाँद है
और मैं……. जमी की हया !
सुलोचना वर्मा
Good One जमी की चाँद 🙂
Nice one………………
Bahut umda….