धड़कता है दिल कुछ इस तरह
उनके पास जाने से
छलक जाता है जैसे जाम कोई
भरे हुए पैमाने से
आँखों से पिलातें हैं वो कुछ इस तरह
मिलती है शराब जैसे
किसी मैखाने से
गाते भी हैं वो कुछ इस तरह
बन जाता है गीत
बस उनके गुनगुनाने से
जीत जाते हैं वो हमसे कुछ इस तरह
नहीं रंज हमें भी
हार जाने से
ढूंढते हैं वो मौका कुछ इस तरह
बुलाते हैं कभी-कभी
हमें बहाने से
होती है शाम आजकल कुछ इस तरह
झनझना उठते हैं
तराने से
चाहत का रंग फैला है कुछ इस तरह
पिघले हैं शायद वो भी
मेरे चाहने से
कट रहें हैं दिन अब कुछ इस तरह
नहीं घटते है
अब घटाने से
सुरूर छा रहा है दिनोंदिन कुछ इस तरह
उतरेगा अब बस
उनको पाने से
झड़ रहे हैं मोती कुछ इस तरह
बस उनके
मुस्कुराने से
उनकी तू में भी आप है कुछ इस तरह
रोता है कभी-कभी
जैसे कोई हंसाने से
बढ़ रहा है दर्द अब कुछ इस तरह
फर्क नहीं कोई भी
मल्हम लगाने से
उठ रहें हैं सवाल ज़हन में कुछ इस तरह
समझ में आ जायेंगे
बस उनके समझाने से
धड़कता है दिल कुछ इस तरह
उनके पास जाने से
छलक जाता है जैसे जाम कोई
भरे हुए पैमाने से.
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गुरचरन मेह्ता
लाजवाब !!
दिल को छू लेने वाला है आपका ये कलाम !!
koi tol nahi mehta ji ,aphi jaise logo ki soch hai jo hame nirantar likhne ki prerana deti hai……