संघर्ष
अभाव ज्ञान का
पनप रहा अलगाव सा
अत्याचार अगन समान
अन्याय सुलग रहा
अंधकार फैल रहा
ईमान गुमराह कर रहा
ईमानदारी भटक रही
दिलों में दूरियाँ बढ़ रही
सुखद भविष्य डगमगा रहा
खतरा मंडरा रहा
आशाएँ विखर रहीं
आशान्वित तो फिर भी
स्वस्थ समाज रहा नहीं
संरचना ढीली पड़गई
हमारी भाषा वेश भूषा
भोजन भजन
नाम पर धर्म टूटता
कौन सी भूख से भूखे बैठे
पेट भरता ही नहीं
क्रूर हाथों में
सुलगता समाज
विपरीत धारा में बहता
भयभीत दिखाई पड़ता