घुटनों के बल जब रिढ़ता था मैं
मेरी उंगली पकड़ मुझे चलना सिखाती थी – माँ
शायद कभी फांका भी किया हो
पर मुझे भरपेट खिलाती थी – माँ
मेरे चेहरे पर हमेशा आँचल ढक देती थी – माँ
मेरे सिरहाने के लिए
अपना बाजू रख देती थी – माँ
कभी जो रुला दिया मुझे पल भर को
तो अकेले घंटो रोती थी – माँ
जब तक मैं घर न पहुँच जाऊं
कभी नहीं सोती थी – माँ
जब भी बिजली गुल होती
तो सारी रात पंखा झलती थी – माँ
मैं सोया रहूँ न जागूँ गहरी नींद से
इसलिए सोते सोते भी जगती थी – माँ
जब भी कोई रोग हो जाता तो
लाल मिर्चों का का छोंका लगाती
और नज़रें उतारती थी – माँ
रोग भी सचमुच हिरण हो जाता
बस कुछ इस तरह
पुचकारती थी – माँ
काली रातों से मैं जब डरता था तो
उजाला बन कर
मेरी आँखों में समां जाती थी – माँ
मेरी छोटी-छोटी शरारतों की बाते
करती थी पिताजी से हंस हंस कर
और मेरी बड़ी-बड़ी शरारतें
अक्सर छुपा जाती थी – माँ
पढ़ता था मैं रात में अक्सर
जागती थी माँ रात भर
पेपर मेरे होते थे पर
परीक्षा माँ की होती थी
बन सकूँ कुछ मैं
बस उसकी यही मनोती थी
“मुझे याद है:
एक माँ ने उन चारों भाइयों को अकेले ही पाला था
पर वे चारों मिलकर एक माँ को ना रख सके थे
चारों ने मिलकर उसे घर से बाहर निकाला था”
बेटे तो बहुत देखे हैं कपूत पर
माता, कुमाता, न देखा न सुना
धन- दौलत, प्यार- मोहब्बत
माँ को छोड़ इन सबको चुना
स्नेह से फिर भी माँ
सदा ही दुआएं देती है
उम्र के उस पड़ाव में
हम कहते हैं माँ को एक बला
पर वो सदा हमारी बलाएँ लेती है
बचें रहें हम दुष्प्रभावों से
इसके लिए माँ अक्सर पूजा करती थी
कहीं कभी कुछ हो ना जाए हमें
माँ हमेशा डरती थी
जब कभी मैं रूठ जाता यूँ ही झूठमूठ
तो माँ सचमुच उदास हो जाती थी
और जब मैं खुश होता तो वह ख़ुशी
माँ के लिए कुछ ख़ास हो जाती थी
पर अब नहीं है माँ तो उसे याद कर
मैं खुदको उसकी यादों कीगोद में सुला देता हूँ
और मेरी पत्नी को अपने बच्चों के लिए
वही सब करते देख
अक्सर मुस्कुरा देता हूँ.
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गुरचरन मेह्ता
wah gurucharan ji bahut umda likha hai.bahut khoob.
आपके कमेंट्स सचमुच कुछ और अच्छा लिखने के लिए मेरा हौंसला बढ़ाते हैं.
आप का आभारी. गुरचरन मेहता
maa aakhir maa hoti hai DIL jhakjhorne ke liye dhanyawaad