उनके इंकार में इकरार का इशारा ढूँढा जाये
चलो सर्द राख से शरारा ढूँढा जाये
पंख नहीं है पर असमान छूने की हसरत है
हौसलों के साथ हवाओं का सहारा ढूँढा जाये
जिंदगी हर मोड़ पे पूछती नया सवाल
तमाम सवालों का जवाब करारा ढूँढा जाये
मुश्किल नहीं है मिलना जमीन और असमान का
शर्त ये है की शिद्दत से किनारा ढूँढा जाये
माना की हुस्न चाँद का भी दागदार है
मुश्किल ही सही मगर बेदाग नज़ारा ढूँढा जाये
कभी लहरों से जंग कभी तूफानों से तकरार
बहुत हुआ सफ़र अब किनारा ढूँढा जाये
धर्मेन्द्र शर्मा
जिंदगी हर मोड़ पे पूछती नया सवाल
तमाम सवालों का जवाब करारा ढूँढा जाये.
बहुत खूब.
क्या बात है धरमेंदर जी,
बहुत समय के बाद आपकी कोई रचना देखी है.
लिखते रहे.
bahut bahut dhanyavad hausala badhane ke liye Mehta sahab.
आपने लिखा….
हमने पढ़ा….
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए शनिवार 11/05/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ….
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
सुन्दर ग़ज़ल
bahut dhanyavad kedia sahab. sir sundarata ap jaise logon ke dil me hai.
पंख नहीं है पर असमान छूने की हसरत है
हौसलों के साथ हवाओं का सहारा ढूँढा जाये.
धर्मेन्द्र जी ये पंक्तियां तो अत्यंत लाजवाब है। ऐसे ही लिखते रहिये। बहुत बहुत बधाईयाँ।।
Deepak ji apko hausala badhane ke liye koti koti dhanyavad.