Homeअज्ञात कविख़ामोशी ख़ामोशी लता हाड़ा अज्ञात कवि 05/05/2013 No Comments कभी सुन मेरी ख़ामोशी को.. कई राज गहरे है कभी सुन मेरी धडकनों को कितने सपने सुनहरे है कभी हाथ मेरा थाम कर कुछ दूर मेरे साथ चल फिर सुन कुछ अनकही कुछ बातों को कितने लफ्ज बिखरे है।।। Tweet Pin It Related Posts माँ बरसो मेघ – मधु तिवारी ग़ज़ल -दर्द को तुम धता बता देना -शकुंतला तरार About The Author लता हाड़ा Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.