तुम हमेशा दोस्ती का हाथ बढ़ा देते हो – ये भी कोई बात है
और जब हम बढ़ाते हैं,तुम हटा देते हो – ये भी कोई बात है
जब भी कोई बात करते है हम सीरियस सी
तुम हमेशा मुस्कुरा देते हो – ये भी कोई बात है
जब भी घर आते हैं हम तुम्हारे
तुम कोई न कोई कविता सुना देते हो – ये भी कोई बात है
हमें पसंद हो या न हो खाना तुम्हारे हाथ का
तुम जबरदस्ती खिला देते हो – ये भी कोई बात है
हमने तुम्हे माना है हमेशा से अपना
और तुम हमें गैरों से मिला देते हो – ये भी कोई बात है
कसम खाते हैं हमेशा , न पियेंगे अब कभी
तुम खुद तो पीते हो , हमें भी पिला देते हो – ये भी कोई बात है
चुप रहने की कला भी तुम्हे सीखनी पड़ेगी
मैं कहता हूँ शी: ओर तुम चिल्ला देते हो – ये भी कोई बात है
न मांगो कोई मन्नत हमारे लिए उस दरबार में
वर्ना तुम चल चल कर अपने पावँ ओर छिला देते हो – ये भी कोई बात है
हमें धीरे से हंसने के लिए भी सोचना पड़ता है कई बार
और तुम बिना सोचे समझे खिलखिला दते हो – ये भी कोई बात है
कि झूठ के सहारे ही चल रही है जिन्दगी हमारी
और तुम पल में किसी को भी सच बता देते हो – ये भी कोई बात है
बस्तियों को हटाने और नया प्लाट दिलाने में कितना वक़्त लगा
और तुम वही बस्तियां फिर से बसा देते हो – ये भी कोई बात है
कि ताउम्र रुलाया है लोगों को हमने हँसते हुए “चरन”
और तुम रोतों को पल में हंसा देते हो – ये भी कोई बात है __________________________________________
गुरचरन मेह्ता
ultimate Gurcharan jii dil mein utar gayii aapki kavitaa
wo dard bhii de gaye aur rulaa bhii gaye,
jab humne rulaaya to wo nazaren churaa gaye -yeh bhii koii baat hai 🙂
आपने लिखा….
हमने पढ़ा….
और लोग भी पढ़ें;
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आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ….
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