चन्द लमहा और गुजर जाती तो तेरा क्या जाता
ये रात गर तेरी खुश्बु ले जाती तो तेरा क्या जाता
प्यासी नजरों से कोइ देखे तो शिकायत ही क्यों ?
महफिल मे गर रौनक आजाती तो तेरा क्या जाता
तेरी पायल की झंकार से जाग पडते ये मरते मजनु
बन्जर पडी बाग मे गर बहार आती तो तेरा क्या जाता
लड़खडाते हुए गुजर रहे है कई प्यासे तेरी गलियों में
जाम टकराए गर समल्ने के लिए तो तेरा क्या जाता
सोहरत सुन के ही आए है ये दीवाने इस महफिल मे
नजाकत से तेरी गर पाते है शुकुन तो तेरा क्या जाता
मैं तो कुछ और शेर पढ़ना चाहता था
एक-दो ओर लिखते तो तेरा क्या जाता
(बहुत ही सुन्दर रचना)