हिन्दी को हिन्दी रहने दो
बिन्दी ना बनाओ
बिन्दी को बिन्दी रहने दो
हिन्दी ना बनाओ ।
यह मनुहार की भाषा है
अधिकार की नहीं
यह प्रसार की भाषा है
प्रचार की नहीं
इसको जीवन्त रहने दो
क्रत्रिम ना बनाओ।
सम्मेलन आयोजन महाभोज
भारी भारी प्रशस्तियां
वक्तव्यों के बल पर
गरजने वाली हस्तियां
इस्को खुद ही चलने दो
वैशाखी ना लगाओ ।
हिन्दी को धन से मत जोडो
पछ्ताओगे
हिन्दी को मन से मत मोडो
मिट जाओगे
इसे स्वतः अपनाने दो
हव्वा ना बनाओ।
यह अनेकता में पलती है
जन गण मन की आशा है
भारत भर की जनता की
वाणी की अभिलाषा है
इसको मन से समझो
कटुता ना बढाओ ।
एक रात मे रोम नहीं
बन गया
एक सांस मे व्योम नही
भर गया
मिलकर धीरे कदम बढाओ
जल्दी ना मचाओ ।
हिन्दी को हिन्दी रहने दो
बिन्दी ना बनाओ
बिन्दी को बिन्दी रहने दो
हिन्दी ना बनाओ ।